रेलगाड़ी और घर के प्यार के बीच एक गहरा संबंध होता है । घर की याद बाहर रहने वाले लोगों को हमेशा ही सताती है चाहे बाहर रहने वाला व्यक्ति कितने भी मजबूत हृदय वाला क्यों ना हो । मेरी दादी से जुड़ी कुछ यादें जिनमें मेरे बचपन में जब मैं छोटा हुआ करता था तो मेरे जन्मदिन पर उनके द्वारा तिलक लगा के और आरती उतार करके जन्मदिन मनाया जाता था । उस समय इन चीज़ों की इतनी एहमियत नही पता थी । कुछ दिनों पहले मेरी डिग्री के इस अंतिम वर्ष में मुझे ख्याल आया कि क्यों ना फिर से वो बचपन की याद को दोहराया जाए । हालांकि दादी अब चारपाई तक सीमित रह गई हैं और अपनी वृद्धावस्था यापन कर रही हैं । अब बोलती नहीं हैं , खुद से उठ भी नहीं पाती । लेकिन इस अवस्था में भी उनसे तिलक लगवाने की लालसा ने मुझे घर का टिकट कराने के लिए बाध्य कर दिया । घर में बिना किसी को बताए मैंने टिकट करा लिया और घर आने को तैयार हो गया । जन्मदिन से दो दिन पहले मैं अचानक घर पहुंचा तो किसी को भी यकीन नहीं हुआ । दादी के पास बैठा और पूरे यकीन से पूछा कि - " हम के हयी माई ? " , मुझे पता था दादी नही बता पाएंगी । दादी ने कुछ ही वक्त लिया होगा ...
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